प्रयागराज। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत नरेंद्र गिरि की सोमवार को संदिग्ध मौत हो गई। उनका शव प्रयागराज के उनके बाघंबरी मठ में ही फंदे से लटका मिला। उनकी मौत को लेकर अलग-अलग थ्योरी सामने आ रही है।
सबसे ज्यादा चर्चा में उनके शिष्य आनंद गिरि हैं, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इसकी वजह बाघंबरी गद्दी की 300 साल पुरानी वसीयत है, जिसे नरेंद्र गिरि संभाल रहे थे। कुछ साल पहले आनंद गिरि ने नरेंद्र गिरि पर गद्दी की 8 बीघा जमीन 40 करोड़ में बेचने का आरोप लगाया था, जिसके बाद विवाद गहरा गया था। आनंद ने नरेंद्र पर अखाड़े के सचिव की हत्या करवाने का आरोप भी लगाया था।
आखिर ये अखाड़े होते क्या हैं? इनकी परंपरा और इतिहास क्या है? इनमें एंट्री कैसे होती है? आइये जानते हैं…
अखाड़े कब और कैसे बने?
कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने आठवीं सदी में 13 अखाड़े बनाए थे। इन अखाड़ों का गठन हिंदू धर्म और वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए किया गया था। उस दौर में वैदिक संस्कृति और यज्ञ परंपरा संकट में थी, क्योंकि बौद्ध धर्म तेजी से भारत में फैल रहा था और बौद्ध धर्म में यज्ञ और वैदिक परंपराओं का निषेध था। मूलतः धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की एक सेना की तर्ज पर ही अखाड़ों को तैयार किया गया था।
जिसमें उन्हें योग, अध्यात्म के साथ शस्त्रों की भी शिक्षा दी जाती है। आज तक वही अखाड़े बने हुए हैं। नासिक कुंभ को छोड़कर बाकी कुंभ मेलों में सभी अखाड़े एक साथ स्नान करते हैं। नासिक के कुंभ में वैष्णव अखाड़े नासिक में और शैव अखाड़े त्र्यंबकेश्वर में स्नान करते हैं। यह व्यवस्था पेशवा के दौर में कायम की गई जो सन 1772 से चली आ रही है।
अखाड़ों की अपनी व्यवस्थाएं होती हैं, लेकिन आदि शंकराचार्य ने इन 10 अखाड़ों (शैव और उदासीन) की व्यवस्था चार शंकराचार्य पीठों के अधीन की है। इन अखाड़ों की कमान शंकराचार्यों के पास होती है। अखाड़ों की व्यवस्था के लिए कमेटी के चुनाव होते हैं, लेकिन अखाड़ा प्रमुख का पद अलग होता है, जो अखाड़ों की अगुआई करता है। 10 शैव अखाड़ों में आचार्य महामंडलेश्वर पद सबसे बड़ा होता है, ये अखाड़े के प्रमुख आचार्य होते हैं, जिनके मार्गदर्शन में अखाड़े काम करते हैं, महंत और महामंडलेश्वर स्तर के संतों की अखाड़े में एंट्री इन्हीं की अनुमति से होती है और ये ही उनके आचार्य माने जाते हैं।
वहीं, वैष्णव अखाड़ों में अणि महंत पद सबसे बड़ा होता है। इसमें महामंडलेश्वर जैसे पदों के समतुल्य श्रीमहंत पद होता है। इन सभी श्रीमहंतों के आचार्य को अणि महंत कहा जाता है, जो अखाड़े का संचालन करते हैं।
ये 13 अखाड़े कौन से हैं?
परंपरा के मुताबिक शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के संन्यासियों के मान्यता प्राप्त कुल 13 अखाड़े हैं। इन अखाड़ों का नाम निरंजनी अखाड़ा, जूना अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, अटल अखाड़ा,आह्वान अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंचाग्नि अखाड़ा, नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा, वैष्णव अखाड़ा, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा,उदासीन नया अखाड़ा, निर्मल पंचायती अखाड़ा और निर्मोही अखाड़ा है।
शाही सवारी, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-नाद, नागा-अखाड़ों के करतब और तलवार और बंदूक का खुले आम प्रदर्शन यह अखाड़ों की पहचान है। यह साधुओं का वह दल है जो शस्त्र विद्या में पारंगत होता है। अखाड़ों से जुड़े संतों के मुताबिक जो शास्त्र से नहीं मानते, उन्हें शस्त्र से मनाने के लिए अखाड़ों का जन्म हुआ।
इन अखाड़ों ने स्वतंत्रता संघर्ष में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आजादी के बाद इन अखाड़ों ने अपना सैन्य चरित्र त्याग दिया था। शुरू में सिर्फ 4 प्रमुख अखाड़े थे, लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से उनका बंटवारा होता गया।
इन अखाड़ों को अखाड़ा नाम कैसे मिला?
अखाड़ा, यूं तो कुश्ती से जुड़ा हुआ शब्द है, मगर जहां भी दांव-पेंच की गुंजाइश होती है, वहां इसका प्रयोग भी होता है। पहले आश्रमों के अखाड़ों को बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था। पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था। साधुओं के जत्थे में पीर होते थे। अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल से शुरू हुआ। हालांकि, कुछ ग्रंथों के मुताबिक अलख शब्द से ही ‘अखाड़ा’ शब्द की उत्पत्ति हुई है। जबकि, धर्म के कुछ जानकारों के मुताबिक साधुओं के अक्खड़ स्वभाव के चलते इसे अखाड़ा का नाम दिया गया है।
ये अखाड़े काम कैसे करते हैं?
कुंभ में शामिल होने वाले सभी अखाड़े अपने अलग-नियम और कानून से संचालित होते हैं। यहां जुर्म करने वाले साधुओं को अखाड़ा परिषद सजा देता है। छोटी चूक के दोषी साधु को अखाड़े के कोतवाल के साथ गंगा में पांच से लेकर 108 डुबकी लगाने के लिए भेजा जाता है। डुबकी के बाद वह भीगे कपड़े में ही देवस्थान पर आकर अपनी गलती के लिए क्षमा मांगता है।
फिर पुजारी पूजा स्थल पर रखा प्रसाद देकर उसे दोषमुक्त करते हैं। विवाह, हत्या या दुष्कर्म जैसे मामलों में उसे अखाड़े से निष्कासित कर दिया जाता है। अखाड़े से निकल जाने के बाद ही इन पर भारतीय संविधान में वर्णित कानून लागू होता है।
अगर अखाड़े के दो सदस्य आपस में लड़ें-भिड़ें, कोई नागा साधु विवाह कर ले या दुष्कर्म का दोषी हो, छावनी के भीतर से किसी का सामान चोरी करते हुए पकड़े जाने, देवस्थान को अपवित्र करे या वर्जित स्थान पर प्रवेश, कोई साधु किसी यात्री, यजमान से अभद्र व्यवहार करे, अखाड़े के मंच पर कोई अपात्र चढ़ जाए तो उसे अखाड़े की अदालत सजा देती है।
अखाड़ों के कानून को मानने की शपथ नागा बनने की प्रक्रिया के दौरान दिलाई जाती है। अखाड़े का जो सदस्य इस कानून का पालन नहीं करता उसे भी निष्कासित कर दिया जाता है।
अखाड़े में कैसे होती है साधुओं की एंट्री?
अखाड़ों में साधुओं की एंट्री आसान नहीं होती है। शैव परंपरा में नागा साधु बनने के लिए अखाड़े को काफी समय देना होता है। इसके लिए अखाड़ों की अपनी अलग व्यवस्था है। अखाड़े में आते ही किसी को भी दीक्षा नहीं दी जाती। अगर कोई साधु बनना चाहता है, तो उसे कुछ समय अखाड़े में रखकर अपनी सेवाएं देनी होती है।
साधुओं के साथ रहकर उनकी सेवा और इसी दौरान अपने गुरु को चुनना होता है। सेवा का समय 6 महीने से लेकर 6 साल तक भी हो सकता है। इस दौरान अखाड़ा उस व्यक्ति का इतिहास और पारिवारिक पृष्ठभूमि की जांच करता है, उसके चरित्र के बारे में पता लगाता है।
फिर, किसी कुंभ मेले में उसे दीक्षा दी जाती है। इसके लिए व्यक्ति को अपने सांसारिक जीवन का त्याग करना पड़ता है, खुद का पिंडदान करना होता है। करीब 36 से 48 घंटे की दीक्षा प्रक्रिया के बाद उसे नए नाम के साथ अखाड़े में एंट्री दी जाती है।
क्या अखाड़ों में चुनाव होते हैं?
अखाड़े के साधु-संतों के मुताबिक अखाड़े लोकतंत्र से ही चलते हैं। जूना अखाड़े में छह साल में चुनाव होते हैं। कमेटी बदल दी जाती है। हर बार नए को चुनते हैं, यह इसलिए ताकि सभी को नेतृत्व का मौका मिले। सभी संतों में भी अच्छी नेतृत्व क्षमता आए। कुछ अखाड़ों में बाकायदा चुनाव प्रक्रिया होती है, जरूरत पर वोटिंग भी होती है।
अच्छा काम करने वाले को दोबारा चुना जाता है, नहीं करने पर बदल दिया जाता है। कुछ अखाड़े ऐसे भी हैं जहां चुनाव नहीं होता है। इसी तरह अखाड़ा परिषद में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव सहित 16 लोगों की कमेटी चुनी जाती है, इसे कैबिनेट कहते हैं। कमेटी (कैबिनेट) की समय-समय पर बैठक होती है।
आपात बैठक का भी प्रावधान है। सिंहस्थ या कुंभ में जब भी धर्मध्वज की स्थापना होती है, कमेटी स्वत: भंग हो जाती है। सारे अधिकार दो प्रधान के पास आ जाते हैं, यह मिलकर पूरे सिंहस्थ या कुंभ की व्यवस्था संभालते हैं। कुंभ-सिंहस्थ के बाद कमेटी वापस अस्तित्व में आ जाती है।
इन अखाड़ों में होता है चुनाव
जूना अखाड़ा : 3 और 6 साल में चुनाव। 3 साल में कार्यकारिणी, न्याय से जुड़े साधुओं का। 6 साल में अध्यक्ष, मंत्री, कोषाध्यक्ष।
पंचायती निरंजनी अखाड़ा : पूर्ण कुंभ, अर्द्धकुंभ इलाहाबाद में छह-छह साल में नई कमेटी चुनते हैं।
पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा : 5 साल में पंच परमेश्वर चुनते हैं।
पंच दशनामी आवाहन अखाड़ा : तीन साल में रमता पंच। बाकी छह साल में चुनाव।
पंचायती आनंद अखाड़ा : छह साल में होते हैं चुनाव।
पंच अग्नि अखाड़ा : तीन साल में चुनाव।
पंच रामानंदी निर्मोही अणि अखाड़ा : छह साल में चुनाव।
यहां नहीं होते चुनाव
पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा: पंच व्यवस्था नहीं। चार महंत होते हैं, जो आजीवन रहते हैं, रिटायर नहीं होते।
पंचायती उदासीन नया अखाड़ा : एक बार बने तो आजीवन रहते हैं।
पंचायती निर्मल अखाड़ा: चुनाव नहीं होते, स्थाई चुनते हैं।
पंच दिगंबर अणि अखाड़ा: चुनाव नहीं। एक बार चुनते हैं। उन्हें असमर्थता, विरोध होने पर पंच हटाते हैं।
पंच रामानंदी निर्वाणी अणि अखाड़ा: एक बार चुने जाने पर आजीवन या जब तक असमर्थ न हो जाएं।