जिस दशक में मोदी-BJP ने भारत पर थोपी अपनी विचारधारा, उसी…

आकार पटेल

जिस दशक में भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा ने भारत पर कब्जा किया है, उसी दशक में अन्यत्र भी बदलाव हुए हैं। 2015 में चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने विदेशी तकनीक पर चीन की निर्भरता कम करने के 10 वर्षीय कार्यक्रम और चीन को एक कम लागत वाले निर्माण स्थल यानी मैन्यूफैक्चरर से बदलकर जर्मनी, ताइवान, जापान, कोरिया और अमेरिका जैसी दुनिया की सबसे उन्नत अर्थव्यवस्थाओ से सीधा मुकाबला करने की पहल का ऐलान किया था।

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इस योजना को मेड इन चाइना 2025 का नाम दिया गया था। इसके तहत सेमी-कंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, रोबोटिक्स, कमर्शियल एयरक्राफ्ट, ड्रोन्स, हाई स्पीड रेल, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और बैटरी, अत्याधुनिक और उन्नत जहाज और सोलर पैनल बनाने के कुछ खास सेक्टर की पहचान की गई थी।

इन क्षेत्र या सेक्टर्स को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया था, जैसे किन क्षेत्रों में चीन पीछे है, किन में प्रतिस्पर्धी है और किन क्षेत्रों में ग्लोबल लीडर यानी शीर्ष पर है। ब्लूमबर्ग के मुताबिक 2015 में चीन इनमें से अधिकांश क्षेत्रों में पीछे था, हाई स्पीड रेल और बैटरी जैसे क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धी था और सोलर पैनल के मामले में ग्लोबल लीडर था। लेकिन महत्वकांक्षा इन सभी क्षेत्रों और उद्योगों में शीर्ष पर पहुंचने की थी।

इस कार्यक्रम या योजना की घोषणा से अमेरिका और उसके सहयोगी गंभीर रूप से नाराज हो गए। खासतौर से अमेरिका को तो आदत ही नहीं थी कि वह किसी भी मामले में किसी अन्य देश को ग्लोबल लीडर बनते हुए देखे, क्योंकि उसे तो दुनिया पर हावी होने का ईश्वरीय अधिकार प्राप्त था।

चीन की इस प्रगति और उदय से अमेरिकी राष्ट्रपति को भी खतरा महसूस हुआ, जिसकी अर्थव्यवस्था फिलहाल अमेरिकी अर्थव्यवस्था के दो-तिहाई के बराबर है और अगले कुछ दशकों में संभवतः अमेरिका के बराबर आ जाएगी।

चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना से नाराजगी इतनी गहरी थी कि चीन ने जल्द ही मेड इन चाइना 2025 का जिक्र ही करना बंद कर दिया। डोनाल्ड ट्रंप ने जब पहली बार 2017 में राष्ट्रपति पद संभाला था जो अमेरिका ने चीन पर भारी टैरिफ लगाया। अने वाले वर्षो में चीन की कंपनी हुएवी पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बाद जो बाइडन के कार्यकाल में हाई एंड कम्प्यूटर चिप्स की चीन को बिक्री पर पाबंदी लगा दी गई।

ये सारे कदम चीन के उदय को रोकने के लिए लगाए गए थे, और इससे दोनों देशों के बीच चलने वाले ऐसी आर्थिक साझेदारी को नुकसान पहुंचा जिससे दोनों ही देशो को फायदा होता था। आज डोनाल्ड ट्रंप फिर से ऐसे टैरिफ लगा रहे हैं चन की प्रगति की रफ्तार तो कम होगी, लेकिन इससे अमेरिका में महंगाई का जोखिम भी बढ़ जाएगा।

अब, चीन भले ही मेड इन चाइना 2025 को प्रचारित नहीं करता है, लेकिन उसकी योजना पर काम निरंतर जारी रहा।

2025 आते-आते चीन उन सभी क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में पहुंच गया और आधे क्षेत्रों में तो ग्लोबल लीडर बन गया है। आज चीन ऐसे कमर्शियल विमान बनाता और चलाता है जिसे सिर्फ बोइंग या एयरबस की बना पाते थे। चीन निर्मित कॉमैक विमान कई एयरलाइंस इस्तेमाल कर रही हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में चीन की क्षमता का अनुमान पिछले महीने सामने आए डीपसीक से हो ही चुका है। अमेरिका के लिए तो यह दो कारणों से अचंभित करने वाला था। पहला तो यह कि चीन ने ऐसा कमाल एनविडिया द्वारा बनाए जा रहे सबसे उन्नत चिप्स के बिना कर दिखाया और न ही इसमें इस पर उतना पैसा लगाया जितना कि अमेरिके कैलीफोर्निया स्थित कंपनी लगाया था। दूसरा कारण यह कि सिलिकॉन वैली ने कल्पना भी नहीं की थी कि प्रशांत के पार की कोई कंपनी उनकी बराबरी कर पाएगी। अब स्थिति यह है कि आज की तारीख में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के मोर्चे पर सिर्फ दो ही बडे खिलाड़ी हैं, और वह हैं अमेरिका और चीन, न कि यूरोप या कोई और अन्य देश।

निर्यात की पाबंदियों के बावजूद उधर हुएवी अब ऐसे चिप्स बना रहा है और इस मामले में ताइवान से अब कुछ ही पीछे रह गया है। ये चिप्स अत्याधुनिक तो नहीं हैं, लेकिन वे घर पर ही बनाए गए हैं और डीप सीक से पता चलता है कि चीनी प्रतिभा कम संसाधनों के साथ काम चला सकती है। चीन अपने खुद के विमानवाहक पोत और एलएनजी कैरियर बनाता है और इसने 2022 में अपने सबसे बड़े पोत को तैनात किया है।

जनवरी में चीन ने दुनिया के कुछ सबसे उन्नत सैन्य विमानों को सार्वजिक किया। और इसमें कोई शक नहीं कि आज इलेक्ट्रिक कारों, हाई स्पीड रेल, सोलर पैनल, बैटरी और ड्रोन के मामले में चीन का कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं है। यह इलेक्ट्रिक कारों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक है।

चीन आज दुनिया के 80 फीसदी सोलर पैनल, दुनिया की 75 फीसदी लिथियम आयन बैटरियां (एक चीनी कंपनी, सीएटीएल, अकेले वैश्विक बाजार के एक तिहाई हिस्से को नियंत्रित करती है) और दुनिया के 75 फीसदी ड्रोन बनाती है (चीन की एक कंपनी, डीजेआई, वैश्विक बाजार के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नियंत्रित करती है)। चीन के पास दुनिया के हाई स्पीड रेल नेटवर्क का 40,000 किलोमीटर का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है। (अहमदाबाद-मुंबई की दूरी 500 किमी है) और चीन का यह नेटवर्क अभी भी लगातार बढ़ रहा है।

चीन की लगातार प्रगति को लेकर पश्चिमी दुनिया और खास तौर पर अमेरिका संशय में रहा हैं और मानता है कि यह जल्द ही प्रगति की यह रफ्तार लड़खड़ा जाएगी। वैसे, ऐसा नजरिया करीब 20 वर्षों से बना हुआ है, लेकिन चीन ने अपनी प्रगति से उन्हें निराश ही किया है। गौरतलब है कि 1990 में जब हमारे आर्थिक सुधारों की शुरुआत हुई थी, तो भारत और चीन बराबर थे, लेकिन आज चीन की अर्थव्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था से छह गुना बड़ी है।

भारत और चीन के बीच 2020 के बाद पैदा हुई खटास, अमेरिका की तरफ से टैरिफ की मार और भारत से उन्नत चीनी वस्तुओं को पहुंच देने में झिझक का मतलब है कि भारतीयों को इसका ठीक से अंदाजा ही नहीं है कि हमारा पड़ोसी कितनी प्रगति कर रहा है। कई मायनों में चीन अंदरूनी तौर पर अपना आंकलन करता रहता है और वहां किसी लोकप्रिय अंग्रेजी मीडिया की गैरमौजूदगी के चलते हमारे लिए उनकी प्रगति का अनुनाम लगाना मुश्किल है। इसके अलावा मारे मीडिया की अज्ञानता और चीन की प्रगति में दिलचस्पी की कमी से यह समस्या और बढ़ गई है।

लेकिन, दुनिया ने इस बात को पहचान लिया है कि चीन अब एक उन्नत अर्थव्यवस्था बन चुका है, और इसके लिए उसने उस योजना पर काम किया जिसे मात्र एक दशक पहले ही लागू किया गया था। चीन के प्रधानमंत्री रहे ली केकियांग की 2023 में मृत्यु हो गई, लेकिन आखिरी समय में उनके चेहरे पर संतुष्टि का भाव रहा होगा कि उनके दौर में चीन ने जिस 10 वर्षीय योजना पर काम शुरु किया था, वह कामयाब हुई है।

पाठकों को एक बार फिर याद दिला दें कि यह वही दशक है जब बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विचारधारा से भारत पर कब्जा किया है।

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