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नौसेना का एलपीडी प्रोजेक्ट सात साल बाद रद्द

– 20 हजार करोड़ का सौदा रद्द होना निजी घरेलू शिपयार्ड के लिए झटका
– अब लैंडिंग डॉक प्लेटफॉर्म प्रोजेक्ट के लिए नए सिरे से प्रक्रिया होगी शुरू

नई दिल्ली। संसद के मानसून सत्र में पिछले महीने नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) के सवाल उठाये जाने के बाद रक्षा मंत्रालय ने 20 हजार करोड़ रुपये के लैंडिंग डॉक प्लेटफार्म परियोजना के लिए एक अनुरोध प्रस्ताव (आरएफपी) रद्द कर दिया है, जिसे निजी घरेलू शिपयार्ड के लिए एक झटका के रूप में देखा जा रहा है। सात साल बर्बाद होने के बाद अब लैंडिंग डॉक प्लेटफॉर्म प्रोजेक्ट के लिए नए सिरे से प्रक्रिया शुरू होगी।

लैंडिंग डॉक प्लेटफॉर्म (एलपीडी) परियोजना ​के तहत भारतीय नौसेना के लिए चार ​जहाज बनाये जाने थे।​ इस प्रोजक्ट को सात साल पहले शुरू किया गया था। नवम्बर, 2013 में भारतीय नौसेना ने निजी शिपयार्डों से 20 हजार करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर चार एलपीडी बनाने के प्रस्ताव मांगे थे। जुलाई 2014 में एबीजी शिपयार्ड, एलएंडटी शिपबिल्डिंग और रिलायंस नेवल (तब पिपावाव डिफेंस एंड ऑफशोर इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड) ने इस परियोजना में दिलचस्पी दिखाकर टेंडर में भाग लिया।

2014 और 2017 के बीच रक्षा मंत्रालय ने वित्तीय कमी और ऋण चूक के कारण एबी​​जी को अयोग्य घोषित करने से पहले चार बार बोली को बढ़ाया। इसके बाद दोबारा वाणिज्यिक बोली लगाने के लिए एलएंडटी शिपबिल्डिंग और रिलायंस नेवल को कहा गया। फिर 2017 और 2020 के बीच मंत्रालय ने दोनों कंपनियों को अपनी वाणिज्यिक बोली बढ़ाने के लिए पांच बार कहा लेकिन दोनों कम्पनियां अपनी पुरानी बोली पर ही टिकी रहीं।

इस योजना के तहत भारतीय शिपयार्डों के लिए विदेशी फर्मों के साथ गठजोड़ करके भारत में लैंडिंग डॉक प्लेटफॉर्म (एलपीडी) बनाए जाने थे। फ्रांसीसी रक्षा कंपनी डीसीएनएस भी इस परियोजना पर भी नजर रखे हुए थी। यह फ्रांसीसी रक्षा कंपनी डीसीएनएस पहले से ही मुंबई में अपने घरेलू साझेदार मझगांव डॉक लिमिटेड (एमडीएल) के माध्यम से भारत में स्कॉर्पीन पनडुब्बियों का निर्माण कर रही है।

डीसीएनएस ने इस परियोजना को हथियाने के लिए पिपावाव (अब रिलायंस नेवल) के साथ करार किया। इस बीच एलएंडटी ने स्पेन की कंपनी नवैन्टिया के साथ समझौता किया था। इन सब कवायदों के बावजूद एलपीडी परियोजना का अधिग्रहण करने के लिए कोई एक समूह या एकल कंपनी फाइनल नहीं हो पाई। इस वजह से यह प्रोजेक्ट सात साल से लटका रहा।

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