पंजाब की सियासत : 19% जटसिखों की जगह अब 70% दलित-हिंदू वोट बैंक पर नजर

अमृतसर/जालंधर। पंजाब में 7 महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं। ऐसा पहली बार है जब दलित और हिंदू इस पंजाबी बहुल बॉर्डर स्टेट की सियासत के केंद्र में हैं। अभी तक यहां दोनाें प्रमुख सियासी दल- शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस- राज्य की कुल आबादी में 19% का हिस्सा रखने वाले जट्टसिखों पर ही दांव लगाते रहे हैं, मगर इस बार सबकी नजर 70% दलित-हिंदू वोट बैंक पर है। इसमें कांग्रेस और अकाली दल भी शामिल हैं।

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पंजाब की राजनीति में दलितों और हिंदुओं की उपेक्षा किस कदर होती रही है, यह इस बात से ही समझा जा सकता है कि रामगढ़िया सिख बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले ज्ञानी जैल सिंह को छोड़ दें तो 1967 के बाद पंजाब में नॉन जट्ट कभी मुख्यमंत्री नहीं बना। कह सकते हैं कि सत्ता की चाह में सियासी दल आतंकवाद के दौर के बाद पंजाब को ध्रुवीकरण की राह पर लेकर चल पड़े हैं। उनकी नजर राज्य के उन 70% दलित और हिंदू वोटरों पर है, जिनके राजनीतिक नसीब में कभी CM की कुर्सी नहीं रही।

अकाली दल : सिखों की पार्टी का टैग नुकसान न कर दे इसलिए दलित-हिंदू कार्ड
शिरोमणि अकाली दल पंथक और सिखों की नुमाइंदगी करने वाली पार्टी मानी जाती है जहां जट्टसिखों का दबदबा है। बेअदबी कांड से उखड़े पैर फिर से जमाने के लिए अकाली दल ने किसान आंदोलन को समर्थन देकर बड़ा दांव खेलने का प्रयास किया।

पहले हरसिमरत कौर बादल ने मोदी सरकार से इस्तीफा दिया और फिर सुखबीर ने 27 साल पुराने उस गठजोड़ को तोड़ दिया जिसे उनके पिता परकाश सिंह बादल नूंह-मास दा रिश्ता (नाखून और चमड़ी) बताते रहे हैं। दलित वोटबैंक को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने बसपा से गठबंधन किया। इसके बावजूद सिखों की पार्टी का ठप्पा सियासी नुकसान न करा दे और हिंदू वोटबैंक दूर न हो जाएं, इसलिए सुखबीर ने हिंदू डिप्टी CM का कार्ड खेल दिया।

कांग्रेस : कैप्टन पहले दिन से कह रहे- पंजाब में CM और पार्टी प्रधान सिख नहीं होने चाहिए
नवजोत सिद्धू अब पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बखूबी समझ रहे हैं कि अकाली दल का हिंदू और दलित डिप्टी CM का फॉर्मूला सूबे में उनके सरकार रिपीट करने के सपने को तोड़ सकता है। इसलिए वह पार्टी हाईकमान के सामने लगातार तर्क दे रहे थे कि सूबे में सोशल बैलेंस बनाए रखने के लिए कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष किसी हिंदू को बनाना चाहिए।

क्योंकि कैप्टन जानते हैं कि पंजाब में रहने वाले हिंदू इस बात को लेकर कुछ हद तक आशंकित रहते हैं कि पंजाब में धार्मिक भाईचारा खराब न हो। इसलिए वह भाजपा से दूर होने की स्थिति में कांग्रेस को ही वोट देते हैं। अब क्योंकि CM और पार्टी प्रधान की सीट पर सिख चेहरे हैं तो वोटरों में गलत संदेश जा सकता है।

भाजपा : हरियाणा मॉडल के ‘ट्रैप’ में फंसे दल
पंजाब में भाजपा के हरियाणा मॉडल की चर्चा अक्सर होती है जहां जाटों के दबदबे के बावजूद पार्टी ने नॉन जाट समुदाय से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को सीएम बनाकर वोटों का ध्रुवीकरण किया। पंजाब की दोनों प्रमुख पार्टियों-अकाली दल और कांग्रेस- ने कभी दलितों या हिंदुओं को सियासत में तरजीह नहीं दी।

इसी बात को समझते हुए और प्रदेश में 39% दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा ने अकालियों के अलग होते ही दलित CM बनाने का दांव खेल दिया। उसके बाद बाकी पार्टियां भाजपा के इस दांव को काउंटर करने में जुट गईं।

आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी की स्थिति थोड़ी अलग है। पार्टी के विधायक और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हरपाल सिंह चीमा दलित भाईचारे से ही आते हैं।

बॉर्डर स्टेट और आतंकवाद के दौर से उभरे पंजाब में क्या इस तरह की सियासत से आपसी भाईचारे को नुकसान पहुंचेगा? इस सवाल पर समाजशास्त्री भी बंटे हुए हैं। इनमें से कुछ मानते हैं कि अब वोटर सयाना हो चुका है और वह इस राजनीति को समझता है। वहीं कुछ कहते हैं कि चुनावी माहौल में इसका असर दिखेगा और यूथ वोटर इससे प्रभावित होगा।

जनता की सोच जैसी होगी, राजनेता वैसा ही करेंगे : डॉ. निर्मल सिंह
अमृतसर स्थित गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी (जीएनडीयू) के पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. निर्मल सिंह कहते हैं कि पूरे देश में ही जाति व धर्म के आधार पर वोटरों को बांटने का ट्रेंड चल रहा है। डेवलपमेंट के मुद्दे पर कोई नहीं बोलना चाहता। यह डेमोक्रेसी है। यहां वोटरों की जैसी सोच होगी, वैसा ही काम राजनेता करेंगे। हां, धर्म और जाति के नाम पर बांटने से पंजाब को नुकसान तो होगा ही।

वोटबैंक राजनीति से ही पंजाब प्रति व्यक्ति आय में 18वें स्थान पर : मेहरा
अमृतसर में ही स्थित पंचनाद रिसर्च इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट और राजनीतिक एक्सपर्ट डॉ. अरुण मेहरा कहते हैं कि पहले पंजाब में धर्म के नाम पर वोटरों को बांटा जाता था। अब जात के नाम पर भी बांटने की शुरुआत हो चुकी है। इससे नुकसान होगा। 1966 तक पंजाब प्रति व्यक्ति आय में देश में पहले स्थान पर था जो आज 18वें स्थान पर पहुंच चुका है। जात व धर्म की राजनीति छोड़कर डेवलपमेंट पर ध्यान लगाना होगा।

पंजाब में इस बार वोट पोलराजेशन होगा : खालिद
चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ इवनिंग स्टडीज में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर मोहम्मद खालिद के मुताबिक इस बार पंजाब में वोट पोलराजेशन देखने को मिलेगा। भविष्य का कहना मुश्किल है, मगर मौजूदा माहौल में किसान आंदोलन के चलते सूबे में BJP के लिए ज्यादा संभावनाएं नहीं दिखतीं। कांग्रेस को भी मौजूदा कलह के कारण नुकसान उठाना पड़ सकता है।

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