कैसे पता चला कि राहुल गांधी, प्रशांत किशोर और पत्रकारों की ‘जासूसी’ की जा रही है?

ये कहानी बहुत रोचक है. कहानी एक छोटे-से सॉफ़्टवेयर के बारे में. वो सॉफ़्टवेयर, जिसके आतंकवादियों से लड़ने के लिए बनाया गया था, लेकिन ख़बरें बता रही हैं कि ये सॉफ़्टवेयर दुनियाभर के कई सारे लोगों की जासूसी के लिए इस्तेमाल में लाया जा रहा था. इस लिस्ट में भारत के 40 पत्रकार, 2 केंद्रीय मंत्री, विपक्ष के 3 नेता, कुछ एक्टिविस्ट, कुछ रणनीतिकार, सुप्रीम कोर्ट के कुछ जज और कुछ और अन्य लोग शामिल हैं. और आरोप हैं सीधे नरेंद्र मोदी सरकार पर.

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इज़रायल की सर्विलांस कम्पनी NSO ने एक सॉफ़्टवेयर बनाया. पेगासस नाम से. पेगासस का काम यही है. ये आपके फ़ोन में दाख़िल होता है. और छिपकर बैठ जाता है. और आपकी पूरी जानकारी आपकी मर्जी के बिना उसके पास पहुंच जाती है, जो पेगासस चला रहा है. आप किससे बात करते हैं. क्या बात करते हैं.

मैसेज-कॉल. कांटैक्ट. फ़ोटो. वीडियो. सबकुछ ये सॉफ़्टवेयर पढ़ जाता है. और पढ़कर बता देता है किसी एजेंसी या सरकार को. फिर बाद में डेटा लीक से जुड़ी किसी रिपोर्ट में कहा जाता है कि सरकार लोगों की जासूसी कर रही है. जैसा पेगासस मामले में अभी भारत और दुनिया के दूसरे देशों में देखने को मिल रहा है. जानते हैं कि ये पूरा मामला पकड़ में कैसे आया.

पेगासस काम कैसे करता है?

इसका पूरा बयाना आपको अलग से बताएंगे. लेकिन छोटे में बता दे रहे हैं. अगर आप वाट्सऐप यूज करते हैं तो अमूमन जासूसी करने वाली एजेंसियां आपको एक लिंक किसी संदेश के साथ भेजती हैं. इस लिंक को क्लिक करते ही आपके फ़ोन में पेगासस धांय से इंस्टॉल हो जाता है. और काम वही करता है. जो हमने आपको बताया.

ये पूरी कहानी पकड़ में कैसे आयी?

दो एजेंसियों का नाम लेंगे. एमनेस्टी इंटरनेशनल और फ़ॉर्बिडन स्टोरीज़. एमनेस्टी एक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था है और फ़ॉर्बिडन स्टोरीज़ फ़्रांस का एक मीडिया संस्थान है. इन दोनों के पास एक लिस्ट आयी. लिस्ट में बहुत सारे लोगों के नम्बर थे. इन दोनों संस्थानों ने दुनियाभर के दर्जन भर से ज़्यादा मीडिया संस्थानों के साथ ये लिस्ट शेयर की. और साथ ही एमनेस्टी के सिक्योरिटी लैब ने इन नम्बरों और इनसे जुड़े स्मार्टफ़ोन की फ़ोरेंसिक जांच शुरू की.

जब फ़ोन नम्बरों की ये लिस्ट सामने आयी, तो नम्बरों के सामने किसी का नाम नहीं था. लिहाज़ा मीडिया संस्थानों के पत्रकारों ने रिसर्च शुरू किया. इसके बाद एक हजार से ज़्यादा नम्बर पहचान में आए. ये एक हज़ार नम्बर 50 से ज़्यादा देशों में फ़ैले हुए थे.

इनमें अरब के शाही परिवार के लोगों, 65 बड़े बिज़नेसमैन, 85 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, 189 पत्रकारों, 600 से ज़्यादा नेताओं, सरकारी अधिकारियों, मंत्रियों और सैन्य अधिकारियों के नम्बर शामिल थे. कुछ देशों के मुखिया और प्रधानमंत्रियों के भी नाम इस लिस्ट में नज़र आए. 

आगे क्या हुआ?

इन नम्बरों और इनसे जुड़े फ़ोनों की जांच की गयी. जितने भी उपलब्ध हो सके, उतने फ़ोन डिवाइसेज़ की. मतलब जिनके नम्बर मिले, सीधे उनसे कहा गया कि अपना फ़ोन दीजिए. फ़ोन की जांच करनी है. कई लोगों ने इन्कार कर दिया. कुछ लोगों ने फ़ोन सौंप दिया.

फ़ोन की जांच हुई. जांच में पता चला कि इन नम्बरों पर पेगासस के ज़रिए जासूसी की जा रही थी. कई सारे फ़ोनों में पेगासस छिपा हुआ मिला, तो कई सारे फ़ोन में इस बात के सबूत मिले कि पेगासस ने दाख़िल करने की कोशिश की है. और जांच के बाद सारे आंकड़े सौंपे गए टोरंटो विश्वविद्यालय में मौजूद दी सिटिज़ेन लैब को.

इस लैब ने इन सारे आंकड़ों की जांच की. और अच्छे से पड़ताल की. फिर कहा कि ये सारे दावे सही है. NSO के प्रोग्राम पेगासस द्वारा इन फ़ोन नम्बरों पर नज़र रखी जा रही थी.

किन-किन देशों के लोगों का नाम इसमें शामिल है?

भारत के अलावा अजरबेजान, बहरीन, यमन, कज़ाक़िस्तान, मेक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब, हंगरी और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश शामिल हैं. इनमें से सबसे ज़्यादा लोगों की संख्या (15 हजार से भी ज़्यादा) मेक्सिको में रहने वाले लोगों की है. 

भारत के कौन-कौन से लोग शामिल हैं?

मौजूदा केंद्र सरकार की आलोचना करने वालों से शुरू करें तो राहुल गांधी का नाम इसमें सबसे पहले लिया जा सकता है, जिनका नम्बर इस लिस्ट में फ़्लैश हुआ है. चुनाव आयुक्त रहे अशोक लवासा का नाम भी इस लिस्ट में है. उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव के दरम्यान पीएम नरेंद्र मोदी को आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में क्लीन चिट दिए जाने का विरोध किया था.

हालांकि इन लोगों के बारे में आ रही ख़बरें बताती हैं कि इनके केवल नम्बर लिस्ट में सामने आए हैं, वेरिफ़िकेशन वास्ते इन लोगों ने अपने फ़ोन एमनेस्टी या फ़ॉर्बिडन स्टोरीज़ को नहीं सौंपे.

वहीं, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी और पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया रंजन गोगोई के खिलाफ़ यौन शोषण का आरोप लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट की कर्मचारी और उनके 11 परिजनों के नम्बर भी इस लिस्ट में शामिल हैं.

इनके अलावा कई सारे पत्रकारों, एक्टिविस्टों और बिज़नेस जगत से जुड़े लोगों के नाम भी इस लिस्ट में सामने आए हैं. अभी तक आ रही जानकारी के मुताबिक़ भारत से टोटल 300 लोग, और साथ ही दो केंद्रीय मंत्रियों अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद पटेल के नाम भी इस लिस्ट में नज़र आते हैं.

अश्विन वैष्णव ख़ुद इस समय देश के IT मंत्री हैं. उन्होंने 19 जुलाई को सदन में सरकार द्वारा कोई ऐसी जासूसी कराए जाने से इंकार कर दिया. उन्होंने कहा कि पेगासस पर ये रिपोर्ट भारतीय लोकतंत्र और उसके संस्थानों की छवि धूमिल करने का प्रयास है. 

तो क्या सच में मोदी सरकार ने जासूसी करवायी?

इसको समझने के लिए मामले का पेच समझना होगा. लिस्ट में दिए नम्बरों का विश्लेषण करने के बाद ये बात तो पता चली है कि पेगासस का इस्तेमाल करके इन नम्बरों की जासूसी की गयी. लेकिन किसके कहने पर की गयी? ये बात अभी तक साफ़ तौर पर सामने नहीं आ सकी है.

उधर, इजरायली जासूसी कंपनी NSO ने भी साफ़ किया है कि वो सिर्फ़ देशों की सरकारों को ही पेगासस का लाइसेंस देती है, व्यक्तियों को नहीं. ऐसे में ये भी अंदाज़ लगाया जा सकता है कि किसी सरकार के कहने पर ही NSO के इस पेगासस स्पाइवेयर द्वारा लोगों पर नज़र रखी जा रही थी. विपक्ष ने इसे सच मानकर सरकार के खिलाफ हमलावर रुख अपना लिया है.

इस मामले पर बयान जारी कर NSO ने कहा बै कि दुनियाभर के 50 हज़ार नम्बरों की जासूसी करने की बात की जा रही है, जो कि थोड़ा अतिरेक है. वाशिंगटन पोस्ट की मानें तो NSO ने ये भी कहा है कि वो सिर्फ़ लाइसेंस देते हैं, लाइसेंसधारी (जिसका मतलब सरकारों से है) इनका क्या करते हैं और कौन-सा डेटा जुटाते हैं, ये उन्हीं के नियंत्रण में है. और सरकार ने सदन में क्या कहा, वो तो हमने बता ही दिया. बातें और होंगी. परतें और खुलेंगी. नज़र बनाए रखिए.

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