पुराना माल, नया पैकेट: ‘बालिका वधू’ के फर्स्ट लुक से और क्या पता चलता है?

साल 2008 में कलर्स टीवी पर एक सीरियल शुरू हुआ था, नाम था ‘बालिका वधू’. इसमें आठ साल की एक बच्ची की शादी उसी के हम उम्र एक लड़के से करवा दी जाती है. इस शादी के बाद बच्ची क्या कुछ झेलती है और बड़े होने के बाद किस कदर उसकी ज़िंदगी 180 डिग्री बदल जाती है, ये सबकुछ इस सीरियल में दिखाने की कोशिश हुई थी.

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हम कोशिश इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमारे यहां सीरियल्स की शुरुआत तो बड़े मकसद के साथ की जाती है, लेकिन जैसे-जैसे ऐपिसोड्स की संख्या बढ़ती है, ज्यादातर सब घीसे-पिटे ढर्रे पर आ जाते हैं. खैर, ये लंबी बहस का विषय. फोकस करते हैं अभी के मुद्दे पर. हां तो अपडेट ये है कि इसी सीरियल का दूसरा सीज़न आने वाला है. 9 अगस्त से ये सीरियल आएगा, कलर्स टीवी पर ही. कुछ ही घंटों पहले इस सीरियल का प्रोमो सामने आया है.

कलर्स टीवी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर ये प्रोमो जारी किया है. प्रोमो में दिखाया गया है कि एक घर में एक महिला बच्चे को जन्म देने वाली होती है. कमरे के बाहर खड़े पुरुष ये दुआ करते हैं कि बेटी ही पैदा हो. ये दुआ पहली बार सुनने में बड़ी अच्छी लगती है, एक पल के लिए मन में ख्याल आता है कि कितना अच्छा है, लड़की के पैदा होने की दुआ मांगी जा रही है. लेकिन अगले ही झटके में इस दुआ के पीछे का असल मकसद हमें दिखाई देता है.

जब दाई मां आकर जानकारी देती है कि ‘बधाई हो, बेटी पैदा हुई है’. उसी वक्त एक दूसरा आदमी ये कहता दिखता है कि ‘बहू पैदा हुई है’. और फिर दोनों आदमी एक-दूसरे को मीठा खिलाते हैं. माने बेटी जब मां के गर्भ में थी, तभी उसकी शादी तय कर दी गई. और इसी वजह से ये दुआ मांगी जा रही थी कि बेटी पैदा हो, ताकि ये दोनों आदमी अपना-अपना स्वार्थ साध सकें.

 

एक बच्ची जिसने जन्म के बाद ठीक से सांस भी नहीं ली, जिसे पूरा अधिकार है कि वो आगे जाकर क्या करे क्या न करे, उसके अधिकार उसके जन्म के साथ ही उससे छीन लिए गए. बचपन में शादी तय हो जाना या शादी करवा देने से लड़की के केवल एक अधिकार का हनन नहीं होता, बल्कि कई सारे अधिकारी उससे छीन लिए जाते हैं. उसके ऊपर ज़माने भर की पाबंदियां लगा दी जाती हैं.

वो पढ़ना भी चाहे, तो उसे पढ़ाई का हक नहीं मिलता. वो महज़ अपने परिवारवालों की कठपुतली बनकर रह जाती है. हमारे देश में बाल विवाह गैर-कानूनी है. पहले शारदा एक्ट काम करता था, लेकिन साल 2006 में इसकी जगह बाल विवाह निषेध कानून लाया गया.

जो 1 नवंबर 2007 से पूरे देश में लागू हुआ. इसके मुताबिक़ 21 साल और 18 साल से पहले की शादी को बाल विवाह माना जाएगा. ऐसा करने और करवाने पर दो साल की जेल या एक लाख तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है.

आंकड़े क्या कहते हैं?

कानूनी प्रावधान होने के बाद भी आज भी देश के कई हिस्सों में बाल विवाह धड़ल्ले से होते हैं. यूनिसेफ के नए आंकड़ों के अनुसार भारत में हर चार में से एक लड़की की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है. वहीं दुनिया का हर तीसरा बाल विवाह भारत में ही होता है.

भारत के 22 करोड़ से अधिक बाल विवाह वाले बच्चों में से लगभग 10 करोड़ की शादी 15 साल की उम्र से पहले ही हो गई. यूनीसेफ के ही आंकड़ों के अनुसार हर साल भारत में लगभग 15 लाख लड़कियों का बाल विवाह होता है. लैंसेट की एक स्टडी के मुताबिक कोविड 19 से पहले भारत में बाल विवाह के आंकड़ों में कमी आ रही थी.

खासकर लड़कियों की कम उम्र में शादी के आंकड़ो में. लेकिन जर्नल कहता है कि महामारी की वजह से भारत में लड़कियों के बाल विवाह के आंकड़े 17 फीसदी तक बढ़ सकते हैं. इसके पीछे की प्रमुख वजह अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट और स्कूलों का बंद होना है.

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