बुद्धू से महंत बनने की कहानी: ननिहाल में बीता बचपन, शादी तय होने पर छोड़ा था घर; बहन बोलीं- 12वीं तक पढ़े थे,

प्रयागराज। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और प्रयागराज स्थित बाघंबरी मठ के महंत नरेंद्र गिरि ब्रह्मलीन हो चुके हैं। बुधवार शाम उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार मठ के बगीचे में उनके शव को भू-समाधि दी गई। समर्थक और शिष्य उनकी बेबाकी को याद कर रहे हैं।

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जब तक जीवित रहे उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे को लगातार धार दी। धर्मांतरण, तीन तलाक, बकरीद पर जीव हत्या का लगातार आवाज मुखर की। नरेंद्र गिरि के बचपन का नाम बुद्धू था। उनकी बहन कहती हैं कि नरेंद्र गिरि आत्महत्या नहीं कर सकते। सीबीआई जांच होनी चाहिए।

पढ़ें, गिरि के बचपन से अब तक की कहानी…

बचपन में प्यार से बुद्धू पुकारते थे नरेंद्र गिरि को

साधु बनने से पहले नरेंद्र गिरि की परिवार के साथ फोटो। (सबसे बाए खड़े नरेंद्र गिरि उर्फ नरेंद्र सिंह)
साधु बनने से पहले नरेंद्र गिरि की परिवार के साथ फोटो। (सबसे बाए खड़े नरेंद्र गिरि उर्फ नरेंद्र सिंह)

नरेंद्र गिरि प्रयागराज में ही गंगा पार इलाके में सराय ममरेज के छतौना गांव के मूल निवासी थे। उनका असली नाम नरेंद्र सिंह था, पर प्यार से लोग उन्हें बुद्धू कहकर पुकारते थे। करीबी लोगों ने बताया कि उनके पिता भानु प्रताप सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य रहे हैं।

महंत 6 भाई-बहन हैं, जिनमें 3 भाई और दो बहनें है। नरेंद्र गिरि जी अपने छह भाई बहनों में तीसरे स्थान के थे। इनके बड़े भाई अशोक सिंह एक इंटर कालेज में बाबू थे। दूसरे भाई अरविंद सिंह दादरी स्थित एक इंटर कालेज में प्रवक्ता हैं, जबकि तीसरे भाई आनंद सिंह होमगार्ड विभाग में कार्यरत हैं। वहीं, उनकी दोनों बहनों की प्रतापगढ़ में शादी हुई है। जिसमें से एक का नाम उर्मिला सिंह है।

घर से 2 बार भागे, फिर ननिहाल में बीता बचपन

नरेंद्र गिरि का ननिहाल प्रयागराज के फूलपुर के पास ‘गिर्दकोट’ गांव में था। उनका बचपन नाना के घर पर ही बीता। नाना और मामा प्रोफेसर महेश सिंह ही उनकी देखभाल करते थे। सीएमपी डिग्री कॉलेज के शिक्षक प्रो. महेश सिंह बताते हैं कि नरेंद्र गिरि 8 व 10 साल की उम्र में भी घर से भागे थे। उन्हें एक बार मुंबई से पकड़कर लाया गया। उसके बाद से ही ननिहाल में रहे।

फोन कर बताया- संन्यास ग्रहण कर लिया

शादी की बात तय होने के बीच ही गिरि जी ने 1983 में घर छोड़ दिया था। उसके बाद श्रीनिरंजनी अखाड़ा के कोठारी दिव्यानंद गिरि की सेवा में लग गए।
शादी की बात तय होने के बीच ही गिरि जी ने 1983 में घर छोड़ दिया था। उसके बाद श्रीनिरंजनी अखाड़ा के कोठारी दिव्यानंद गिरि की सेवा में लग गए।

नरेंद्र गिरि के मामा प्रो. महेश सिंह ने बताया कि शादी की बात तय होने के बीच ही गिरि जी ने 1983 में घर छोड़ दिया था। उसके बाद श्रीनिरंजनी अखाड़ा के कोठारी दिव्यानंद गिरि की सेवा में लग गए। जनवरी 2001 में लैंडलाइन नंबर पर एक काल आई।

दूसरी ओर से आवाज आई कि डॉ.साहब, मैं महंत नरेंद्र गिरि बोल रहा हूं, कैसे हैं आप…। यह सुनकर हम अचंभित हो गए। बोले- मैं किसी नरेंद्र गिरि को नहीं जानता। आप कौन हैं ? फिर हंसते हुए आवाज आई- मामा मैं बुद्धू हूं। मैंने संन्यास ग्रहण कर लिया है। सारे संस्कार पूरे हो गए हैं, सिर्फ घर से भिक्षा लेने की परंपरा पूरी करनी है उसे आपको करवाना है। भिक्षा की प्रक्रिया पूरी होने के बाद कह दिया कि अब आप लोगों से मेरा कोई संबंध नहीं है।

बहन, बोलीं- भाई 12वीं तक पढ़ें….वो आत्महत्या नहीं कर सकते

बहन उर्मिला बोलीं- 40 साल से भाई को नहीं देखा था। टीवी से मिली खबर तो अंतिम दर्शन करने पहुंची। भाई अशोक ने कहा- उनके घर छोड़ने के बाद 2000 के कुंभ में अचानक उनसे मुलाकात हुई थी।
बहन उर्मिला बोलीं- 40 साल से भाई को नहीं देखा था। टीवी से मिली खबर तो अंतिम दर्शन करने पहुंची। भाई अशोक ने कहा- उनके घर छोड़ने के बाद 2000 के कुंभ में अचानक उनसे मुलाकात हुई थी।

भाई अशोक कुमार सिंह ने बताया कि उनके घर छोड़ने के बाद 2000 के कुंभ में अचानक उनसे मुलाकात हुई थी। उधर, भाई नरेंद्र गिरि की टीवी में मौत की खबर सुनकर स्तब्ध प्रतापगढ़ के पनियारी गांव निवासी बहन उर्मिला सिंह 22 सितंबर को अंतिम दर्शन करने प्रयागराज बाघंबरी मथ पहुंचीं। यहां उन्होंने बताया कि 21 सितंबर की रात 10 बजे टीवी देखकर भाई की मौत की जानकारी हुई। उनके अंतिम दर्शन करने बस करके पहुंचे हैं। भावुक बहन फफक-फफक कर रो पड़ी।

उन्होंने कहा कि भाई आत्महत्या कर ही नहीं सकते थे। पूरे मामले की जांच होनी चाहिए। बहन ने यह भी बताया कि भाई ने 12वीं तक की पढ़ाई की थी। उस दौरान मेरी शादी हो गई, जिसके बाद से (करीब 40 साल) कभी बात ही नहीं हुई। हमेशा भाई को टीवी पर आरती करते हुए देखा है।

बहनोई ने कहा- उच्च स्तरीय जांच हो

बहनोई भागीरथी सिंह- गिरि जी दूसरों को ज्ञान देने थे, ऐसे में वह आत्महत्या कैसे कर सकते हैं।
बहनोई भागीरथी सिंह- गिरि जी दूसरों को ज्ञान देने थे, ऐसे में वह आत्महत्या कैसे कर सकते हैं।

वहीं, बहनोई भागीरथी सिंह ने मीडिया को बताया कि महंत जी दूसरों को ज्ञान देने थे, ऐसे में वह आत्महत्या कैसे कर सकते हैं। इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उनके निधन की पीड़ा हम सभी को है, सहसा विश्वास नहीं हो पा रहा है कि अब वे हमारे बीच नहीं रहे। वहीं, उनके साथ आए करीबियों का भी कहना था कि गिरि जी कभी सुसाइड कर ही नहीं सकते। वो हमेशा दूसरों को ज्ञान देते थे, आत्महत्या कभी कर ही नहीं सकते।

अधिवक्ता भतीजे ने कहा- 12 सितंबर को हुई थी मुलाकात, वो बहुत खुश थे

नरेंद्र गिरि के भतीजे अधिवक्ता अनिल कुमार सिंह ने गिरि की मौत की CBI जांच की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह संदिग्ध मौत है, उनकी हत्या की गई है। 12 तारीख को मैं महाराज जी से गंगा किनारे बंधवा मंदिर पर मिला था। उस समय वह काफी प्रसन्न थे।

राष्ट्रपति का कार्यक्रम था, काफी बातचीत हुई थी। वह 5-6 साल पहले प्रयागराज के हंडिया इलाके में स्थित छतौना के प्रधान जी के निधन पर गांव आए थे। महाराज जी, आत्महत्या कर ही नहीं सकते, इसकी CBI जांच की जानी चाहिए। इसमें बहुत बड़ी साजिश है। दूध का दूध पानी का पानी हो।

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