किसान आंदोलन : शरू हो चुकी है एकजुट होने की क़वायद

पंजाब-हरियाणा की सीमाओं पर चलने वाला किसान आंदोलन धीरे धीरे और गंभीर रूप धारण करता जा रहा है। क्योंकि हरियाणा की सीमा खनौरी में गत 24 दिन से आमरण अनशन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (N.P.) के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा है। किसान नेता के स्वास्थ की देखरेख में लगे डॉक्टर्स उनकी सेहत को लेकर बेहद चिंतित हैं। डल्लेवाल 80 साल की उम्र में इतने दिनों से आमरण अनशन पर बैठे हैं। उनकी देखभाल में लगे डॉक्टर्स के अनुसार पहले से ही कैंसर रोग से पीड़ित डल्लेवाल के लिवर व किडनी को इस अनशन के कारण काफ़ी नुक़सान पहुँच चुका है। उनकी किडनी व लीवर की स्थिति काफ़ी नाज़ुक होती जा रही है।

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ग़ौरतलब है कि इसी वर्ष 13 फ़रवरी को पंजाब के किसान अपनी उन मांगों को पूरी करने के वादों को याद दिलाने के लिये दिल्ली जाना चाह रहे थे जो कि मोदी सरकार द्वारा तीन विवादित कृषि क़ानून वापस लेते समय सरकार द्वारा मानी गयी थीं। परन्तु हरियाणा सरकार ने उन्हें पंजाब सीमा से आगे बढ़कर दिल्ली पहुँचने से रोक दिया। तभी से यह किसान पंजाब – हरियाणा की खनौरी व शम्भू सीमाओं पर डटे हुये हैं और बीच बीच में दिल्ली जाने का प्रयास भी करते रहे हैं।


क़ाबिल-ए-ग़ौर है कि जब एक वर्ष से भी लंबे समय तक चले संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन ने नवंबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे कभी ‘न झुकने ‘ की छवि बनाने वाले नेता को तीन विवादित कृषि क़ानून वापस लेने के लिये मजबूर कर दिया था उस समय देश के किसानों के अधिकांश संगठन एकजुट थे। और इसी किसान एकता ने केंद्र सरकार को घुटने टेकने के लिये मजबूर कर दिया था।


परन्तु उस समय भी कृषि क़ानून वापस लेने की घोषणा करते समय प्रधानमंत्री मोदी यह कहने से चूके थे कि -‘ हमारी सरकार किसानों के कल्याण के लिए देश के कृषि जगत के हित में, गांव, ग़रीब के हित में पूर्ण समर्थन भाव से, नेक नियत से ये क़ानून लेकर आई थी। लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से किसानों के हित की बात हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए। शायद हमारी तपस्या में कमी रही। भले ही किसानों का एक वर्ग इसका विरोध कर रहा था। हमने बातचीत का प्रयास किया।


ये मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया। हमने कृषि क़ानूनों को वापस लेने का फ़ैसला किया।” यह बात मोदी ने तब कही थी जब कि उस समय देश के अधिकांश छोटे बड़े किसान व उनके अधिकांश संगठन एकजुट थे। परन्तु याद कीजिये उस समय भी सरकार ने अपने समर्थन में कई ऐसे संगठनों के नाम बता दिए थे जिनका नाम पहले न तो कभी सुना गया न ही वे संगठन अस्तित्व में थे। यानी फ़र्ज़ी संगठनों को किसान संग्ठन बता कर किसानों में फूट डालने की कोशिश 2020-21 के किसान आंदोलन के समय भी की गयी थी।


परन्तु अब 13 फ़रवरी 24 से किसानों द्वारा शुरू किया गया आंदोलन जिसे कि शुरू से ही संयुक्त किसान मोर्चा से पूर्व में जुड़े सभी किसान संगठनों का समर्थन हासिल नहीं है, वह सिर्फ़ इसी आपसी फूट के चलते लंबा खिंचता जा रहा है। यहाँ तक कि आमरण अनशन पर बैठे 80 वर्षीय किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का जीवन भी संकट में पड़ गया है।


उधर सरकार तमाशाई बनी बैठी है तथा किसानों की आपसी फूट को देखते हुये आंदोलन को तब तक खींचे रखना चाहती है जब तक किसान थक हार कर आंदोलन समाप्त न कर दें या इनमें और अधिक फूट न पड़ जाये। मगर जगजीत सिंह डल्लेवाल के अनशन का सरकार पर असर पड़े या न पड़े लेकिन किसान संगठनों व विपक्षी नेताओं पर इसका प्रभाव पड़ता ज़रूर दिखाई देने लगा है। जहां विभिन्न विपक्षी राजनैतिक दलों के नेता खनौरी स्थित डल्लेवाल के अनशन स्थल पर उनका स्वास्थ समाचार लेने बड़ी संख्या में पहुँचने लगे हैं वहीँ संयुक्त किसान मोर्चा के विभिन्न धड़ों में भी हलचल तेज़ हो चुकी है।


एसकेएम के कई महत्वपूर्ण घटकों से किसान एकता के स्वर उठने शुरू हो चुके हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण बयान किसान नेता राकेश टिकैत की ओर से आया है। पत्रकारों से बातचीत करते हुये टिकैत ने कहा है कि-‘ किसान यदि अलग-अलग चलेंगे तो लुटेंगे। हमें एकजुट रहना होगा। 10 महीने पहले जब आंदोलन शुरू हुआ हमने सबको कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा और सब इकट्ठा हो जाएं। दिल्ली की कॉल अलग-अलग मत दें। जब तक इकट्ठा नहीं होंगे तब तक दिल्ली से दूर रहना चाहिए।


हमें जगजीत सिंह डल्लेवाल की चिंता है। हम प्रदर्शनकारियों के साथ हैं।” राकेश टिकैत ने कहा है कि सरकार को जल्द ही बात करनी चाहिए। बात सरकार को करना है, नफ़ा नुक़्सान सरकार को देखना है। दिल्ली की तैयारी करनी है तो सभी लोगों को इकट्ठा होना होगा। सभी मोर्चे को इकट्ठा होकर बातचीत करनी चाहिए। ग़ौरतलब है कि धरने पर बैठे किसानों ने संयुक्त किसान मोर्चा को आंदोलन को सहयोग व समर्थन देने सम्बन्धी चिट्ठी भी लिखी है।


पंजाब व हरियाणा के भी कई किसान संग्ठन, व्यापक किसान एकता की बात ज़ोर शोर से करने लगे हैं। देर से ही सही परन्तु किसान नेताओं को अब यह समझ आने लगा है कि केंद्र सरकार 2020-21 के संगठित किसानों के आंदोलन को कमज़ोर व बदनाम करने के लिये कौन से हथकंडे नहीं अपना रही थी? फ़र्ज़ी किसान संगठनों को खड़ा करने से लेकर किसान आंदोलन को बदनाम करने तक के लिए सरकार द्वारा कौन कौन से प्रोपेगण्डे नहीं किये गये?


इन्हें आन्दोलनजीवी,ख़ालिस्तानी,देशद्रोही न जाने क्या क्या कहा गया ? आंदोलन के चरित्र पर सवाल खड़े किये गये। परन्तु इन सब आरोपों के बावजूद सरकार को इन्हीं तथाकथित “आन्दोलनजीवी,ख़ालिस्तानी व देशद्रोही” किसानों की मांगों के आगे घुटने भी टेकने पड़े। और स्वयं प्रधानमंत्री को सामने आकर कृषि क़ानून वापस लेने की घोषणा करते समय किसानों को संबोधित करना पड़ा।


इसका कारण केवल एक था और वह था संयुक्त किसान मोर्चा के संयुक्त तत्वावधान में चलने वाला ऐतिहासिक किसान आंदोलन। अब डल्लेवाल के अनशन व 18 दिसंबर को किसानों द्वारा पंजाब में आहूत रेल रोको आंदोलन के बाद ऐसा लगता है कि किसान संगठनों के एकजुट होने की क़वायद फिर से शुरू हो चुकी है।

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