टोक्यो। जापान की 26% आबादी बुजुर्गों की है। इन्हें शोर पसंद नहीं है। कॉलोनी की सड़क, पार्क, फुटपाथ या नर्सरी स्कूलों में आवाज होती है तो लोग पुलिस में शिकायत कर देते हैं। इस कारण यहां ऐसे इलाकों में घर लेने का ट्रेंड बढ़ा है, जहां आसपास शोर न हो।
एक वेबसाइट ऑनलाइन मैप के जरिए लोगों को यह भी बता रही है कि वे जो घर ले रहे हैं, वहां शोर होता है। इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि किस इलाके में बच्चे गलियों में स्कैटबोर्ड चलाते हैं, फुटपाथ पर इकट्ठे होकर घंटों हंसी-ठिठौली करते हैं या पति-पत्नी झगड़ते हैं। हालांकि, इस कवायद ने जापान में नई बहस छेड़ दी है।
शोर की 30% से ज्यादा शिकायतें
जापान की राजधानी टोक्यो में पिछले मार्च और अप्रैल के बीच पुलिस के पास शोर की 30% ज्यादा शिकायतें पहुंचीं। लॉकडाउन के दौरान लोग घरों में थे। बच्चे घर, पार्क, सड़क पर खेले। अमनपसंद लोगों को यह नागवार गुजरा। उन्होंने पुलिस में 6000 से ज्यादा शिकायतें की।
वेबसाइट ने इन शिकायतों को इलाकेवार मैप से जोड़ दिया। विवाद तब शुरू हुआ, जब बच्चों वाले माता-पिता आपत्ति लेने लगे। उन्होंने डर जताया है कि इससे पड़ोसियों के बीच खाई बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों का भी कहना है कि बच्चों के शोर के प्रति समाज में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है। शिगा यूनिवर्सिटी में प्रो. अकिहितो वातानाबे कहते हैं, ‘पहले परिवारवाले माफी मांग लेते थे। बच्चों को अनुशासन में रखते थे, लेकिन अब वे उन लोगों के दुश्मन बन जाते हैं, जो बच्चों को डांटते हैं।’
विशेषज्ञ कहते हैं कि बूढ़ी आबादी बच्चों की आवाज से ज्यादा परिचित नहीं रह गई है। लोग कॉलोनी में खुलने वाले नर्सरी स्कूलों की भी शिकायत कर देते हैं, क्योंकि बच्चे शोर करते हैं। हालात यह है कि परिवार बच्चों को होस्टल भेजने लगे हैं। अर्थशास्त्री तो चिंता जताते हैं कि जापान में बूढ़े लोग बच्चों से दूर हो गए हैं।
छह साल पहले मिली थी बच्चों को शोर की इजाजत
टोक्यो के रिहायशी इलाकों में 6 साल पहले बच्चों को खुली जगह पर खुलकर बात करने या हंसी-ठिठौली की अनुमति मिली थी। 15 साल से एक कानून के तहत बच्चों का जोर से बोलना भी ध्वनि प्रदूषण के दायरे में था। अब बच्चे 45 डेसिबल तक का शोर मचा सकते हैं। यह चिड़िया के चहचहाने के बराबर है, लेकिन लोगों को अब यह भी अखरने लगा है।