लेखक: वैभव पलनीटकर
जीटी रोड से आएं तो टीकरी बॉर्डर से करीब 142 किलोमीटर दूर, मैं हरियाणा में करनाल जिले के मिनी सेक्रेटेरिएट के ठीक सामने खड़ा हूं। अकेला नहीं। मेरे चारों ओर हजारों किसान हैं। कोई सिखों सी पगड़ी बांधे है, तो कोई हरा साफा। सभी जोर से जोर से नारे लगा रहे हैं- “खट्टर सरकार मुर्दाबाद-मुर्दाबाद। किसानों का सिर फोड़ने का हुक्म देने वाले एसडीएम को ईनाम नहीं सजा दो।”
ये किसान किसी धरने पर नहीं बैठे। इन्होंने तो करनाल में सरकारी अफसरों से सबसे बड़े गढ़ मिनी सेक्रेटेरिएट को घेर रखा है। घेरा डालने वालों में राकेश टिकैत, गुरुनाम सिहं चढ़ूनी और योगेंद्र यादव जैसे किसान नेता और पुरुष किसानों के साथ सैकड़ों महिला किसान भी शामिल हैं।
किसानों से कुछ देर बात करने पर ही साफ हो जाता है कि टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर के बाद करनाल किसान आंदोलन का केंद्र बन चुका है। ऊपरी तौर पर भले ही लगे कि किसान सिर्फ अपने साथियों का सिर फोड़ने का हुक्म देने वाले SDM आयुष सिन्हा को सस्पेंड कराने की मांग पर अड़े हैं, लेकिन यह अधूरा सच है।
असलियत तो यह है कि करनाल में किसान और निजाम के बीच पलक झपकने का खेल चल रहा है। किसानों को पता है अगर वो खट्टर सरकार से एक SDM को सस्पेंड नहीं करवा पाए तो संसद से पारित तीन किसान बिल को वापस कराने का दंभ भरना आसान नहीं होगा। करनाल के ही किसान सतेन्द्र सिंह बोले, हरियाणा सरकार अगर SDM को संस्पेंड नहीं करती है तो इतने बड़े आंदोलन की कामयाबी पर ही सवाल उठने लगेंगे। ऐसे में तीनों कृषि कानूनों को वापस करने की मांग बेदम साबित होगी।
दूसरी तरफ खट्टर सरकार भी किसानों को साख को को खराब करने पर तुली है। सरकार जानती है कि अगर किसानो की यह बात मान ली तो दिल्ली में किसानों के तीनों कानूनों को पारित कराने की मांग जोर पकड़ लेगी।
करनाल CM खट्टर का इलाका, किसानों को रसद-सियासत दोनों मिलेगी

किसानों के लिए भी करनाल दिल्ली से ज्यादा सहूलियत भरा है। यहां न केवल उन्हें किसानों की भीड़ और रसद आसानी से मिलती रहेगी बल्कि उसका गहरा राजनीतिक असर भी पड़ेगा। क्योंकि आंदोलन करने वालों में बड़ी तादाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के इलाके के वोटर भी हैं। खट्टर करनाल सीट से ही हरियाणा विधानसभा पहुंचे हैं।
आखिर माजरा क्या है, क्यों भड़के हैं किसान
28 अगस्त को किसान बसताड़ा टोल प्लाजा पर प्रदर्शन कर रहे थे, तभी किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। इस प्रदर्शन के दौरान कई किसानों को चोट आई थी. इसके अलावा तत्कालीन SDM आयुष सिन्हा का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें वो ‘सिर फोड़ देने’ का आदेश देते हुए दिख रहे हैं। बसताड़ा टोल प्रदर्शन के दौरान ही पुलिस लाठीचार्ज में घायल हुए करनाल के रायपुर जाटान गांव के किसान सुशील काजल की भी मौत हो गई थी। इसे लेकर भी किसान गुस्से में हैं।
दिल्ली की तरह बड़ी संख्या में महिला प्रदर्शनकारी भी जुटीं

करनाल में हो रहे किसानों के प्रदर्शन में काफी तादाद में महिलाएं भी शामिल हैं। हिसार की रहने वालीं सुदेश गोयत पिछले 9 महीने से वो दिल्ली की टीकरी बॉर्डर पर रह रही हैं, लेकिन अब वे करनाल आ गई हैं और अब यहीं रहकर प्रदर्शन करने वाली हैं। उनका कहना है कि- ‘खट्टर सरकार ने किसानों के साथ बर्बरता की है। SDM को सस्पेंड किया जाए और जान गंवाने वाले किसान को मुआवजा दिया जाए।
जान गंवाने वाले किसान के बेटे बोले-मुझे भी शहीद होना पड़ा तो पीछे नहीं हटूंगा

बसताड़ा टोल प्लाजा पर प्रदर्शन के बाद किसान सुशील काजल की मौत हो गई। सुशील काजल के बेटे साहिल काजल ने बताया कि- ‘मेरे पिता 9 महीने से किसान आंदोलन में लगे हुए थे, लेकिन अब उनकी शहादत को मैं बर्बाद नहीं होने दूंगा। अब मैं संयुक्त किसान मोर्चा के साथ लगातार लड़ाई लड़ रहा हूं। अगर मुझे भी शहीद होना पड़ा तो मैं पीछे नहीं हटूंगा।
किसानों मांग- SDM आयुष को संस्पेंड कर उनपर हत्या का मुकदमा हो दर्ज
करनाल में लघु-सचिवालय के बाहर भारी तादाद में किसान जमा हो गए हैं। किसानों की मांग है बसताड़ा में हुए लाठीचार्ज में चोट लगने से मरने वाले किसान को 25 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए और परिवारजन को सरकारी नौकरी दी जाए। इसके अलावा सिर फोड़ने का आदेश देने वाले SDM आयुष सिन्हा को सस्पेंड किया जाए और उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए।
दो दिन की बातचीत के बाद भी खट्टर सरकार झुकने को तैयार नहीं

7 और 8 सितंबर को किसानों और अधिकारियों के बीच हुई बातचीत में किसानों की एक भी बात नहीं मानी गई है। किसानों की SDM को सस्पेंड करने की मांग को भी सरकार ने ठुकरा दिया है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा है- आंदोलन लंबा चलेगा, दिल्ली में भी चलेगा और अब यहां पर भी चलेगा।
आंदोलन मिनी सेक्रेटेरिएट के सामने ही चलता रहेगा। हम किसी भी अधिकारी या लोगों को आने जाने से नहीं रोकेंगे। पंजाब और UP से भी किसान यहां आते रहेंगे। सरकार चाहती है कि आंदोलन हिंसक हो, लेकिन हमें आंदोलन शांतिप्रिय बनाए रखना है।
अब किसान नेताओं के लिए साख की लड़ाई बनी, लंबा चल सकता है आंदोलन

25 नवंबर 2020 को दिल्ली की बॉडर्स पर शुरू हुए प्रदर्शनों ने खूब सुर्खियां बटोरीं। किसानों की मुख्य मांग रही कि संसद से पास 3 कृषि कानूनों को मोदी सरकार वापस ले। पिछले 9 महीने में किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई, लेकिन बात नहीं बनी।
कोविड की दूसरी लहर आई, किसान आंदोलन सुर्खियों से बाहर हो गया। आंदोलन भी धीमा पड़ गया, हालांकि कुछ-कुछ जगहों पर प्रदर्शन होते रहे, लेकिन अब किसान आंदोलन का गढ़ करनाल बन गया है, सारे शीर्ष नेता यहां जुटे हैं। वे इसे अपनी साख की लड़ाई मान रहे हैं और अनिश्चितकालीन धरना देने की बात कह रहे हैं।