सुधार का मतलब श्रम कानून को पूरी तरह खत्‍म करना नहीं: राजीव कुमार

नई दिल्‍ली। कोविड-19 की महामारी और देशव्‍यापी लॉकडाउन के बीच कई राज्‍यों द्वारा श्रम कानून में बदलाव से जुड़ी चिंताओं पर नीति आयोग के उपाध्‍यक्ष राजीव कुमार ने स्थि‍त स्‍पष्‍ट करते हुए रविवार को कहा  कि सुधार का मतलब श्रम कानून को पूरी तरह खत्म करना नहीं है। गौरतलब है कि इसको लेकर मजदूर संगठनों ने चिंता भी जताई है।

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कुमार ने कहा कि केंद्र सरकार कामगारों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। गौरतलब है कि हाल ही में मध्‍य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात सहित कई राज्य सरकारों ने मौजूदा श्रम कानूनों में या तो संशोधन किए हैं। इस संबंध में राज्य सरकारों का कहना है कि कोविड-19 से प्रभावित कारोबार को मदद पहुंचाने के अपने प्रयासों के तहत वे ऐसा कर रहे हैं।

नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने इसके बारे में कहा कि मेरे संज्ञान में यह बात आई है कि केंद्रीय श्रम मंत्रालय राज्यों को ये बताने वाला है कि वे श्रम कानूनों को खत्म नहीं कर सकते हैं। क्योंकि भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में शामिल है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इसलिए यह स्पष्ट है कि केंद्र सरकार भी इस बात को नहीं मानती है कि श्रम कानूनों में संशोधन का मतलब लेबर लॉ को पूरी तरह खत्म करना है। क्‍योंकि सरकार श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

उल्‍लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल में एक अध्यादेश के जरिए विभिन्न उद्योगों को 3 साल तक कुछ निश्चित श्रम कानूनों से छूट दी है। वहीं, मध्य प्रदेश सरकार ने भी देशव्‍यापी लॉकडाउन के बीच आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन के लिए कुछ श्रम कानूनों में बदलाव किया है। दरअसल इस अध्यादेश के पारित होने के बाद कई उद्योगों को अगले 3 साल तक विभिन्न तरह के श्रम कानूनों के पालन से छूट मिल गई है।

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